तेरा मुझसे साथ सदियों से,
ये बंधन लगता कोई पुराना है।
एक दिन तुम भी शायद लौट आओ,
ये मेरा भरम लगता कोई पुराना है।
शायद हो, ये नासमझी का काम,
इस आग से परवाने का
रिश्ता लगता कोई पुराना है।
दिल भर आया तो छलक पड़ी बुँदे,
इन बूंदों का आखो से,
रिश्ता लगता कोई पुराना है।
बन जाती है नश्तर अक्सर,
यादों में रात भर जागने का,
मुझे शौक लगता कोई पुराना है।
अब रहने दो समझने समझाने की बातें,
बे गैरत रहने का,
मुझे रोग लगता कोई पुराना है।







बन जाती हैं नश्तर अक्सर.......
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच बातें कह दी आपने कविता में
अरविन्द जांगिड जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत खूब
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
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