हमराही छोड़ चले बेवजह यू ही रूठकर,
मेरी मुफ़लिसी तो आज इक बहाना है।
बे दर्द आलिम सदा अहज़ान रहा इश्क का,
कच्चा घड़ा तो सदा बना इक बहाना है।
बेसब्र है नसीब मुझे जमीदोज करने को,
हाँ मुझसे तेरा प्यार तो इक बहाना है।
तहजीब को खा गयी दीमक फैशन की,
बदलता वक़्त तो बना इक बहाना है।
जमाने ने कभी दिलों को पढ़ा ही नहीं,
जनाब वक़्त की कमी तो इक बहाना है।
बहुत कहना है बाकी तुझसे इस कातिब को,
मेरी बेसब्र दिखती कलम तो इक बहाना है।
-----------------------कच्चा घड़ा:-सोहनी जिस घड़े से रोज महिवाल से मिलने चेनाब पार जाती थी, उसके स्थान पर उसकी ननद ने कच्चा घड़ा रख दिया था।
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... bahut sundar ... behatreen ... ek se badhakar ek sher ... shaandaar !!!
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल... पढने के बहाने से आपके ब्लॉग पर आ गया.. अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएं'yah kalam to ek bahana hai'
जवाब देंहटाएंmitr!isi bahane to ham aap roobru hote hain.
आपकी कविताएँ पढी ,बड़ी गूढ़ बातें सरल तरीके से कही हैं.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लाग पर मेरे लेखन से सहमत हुए,धन्यवाद.
bahut sundar!
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