देखे हैं जमाने के रंग यूँ,
की बदरंग हो लौट आए।
मुलाक़ात उनसे क्या हुई,
लगा खुद से मिल आए।
शायद हमसे टूट नहीं पाया,
जो भरम आप तोड़ आए।
छोड़े कैसे दामन यादों का,
जिनके सहारे जीते आए।
कैसे करूँ तारीफ उसकी,
लफ़्ज भी कम पड़ते आए।
उठती हैं आज दिल में मौजे,
काश बीता वक्त लौट आए।







सभी बढ़िया..काश कि बचपन लौट आता.
जवाब देंहटाएंछोटी बहर की सुन्दर गजल प्रस्तुत करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएं... bahut khoob !!
जवाब देंहटाएंगुजरे वक़्त की मधुर यादें , उस वक्त की बार-बार याद दिलाती हैं।
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल..हर शेर दिल को छू लेता है..
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो माफी चाहता हुॅ कि अपनी व्यस्तताओं के कारण दो दिन आपकी रचना को नही पढ़ सका।
जवाब देंहटाएंशायद हमसे टूटा नही
जो भरम आप तोड़ आए।
खुबसुरत।
सुन्दर गजल प्रस्तुत करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
बेहतरीन गजल ! दूसरी पंक्ति में की की जगह कि पढ़ें तो अच्छा है.
जवाब देंहटाएंशायद वह मुझसे टूटा नहीं
जवाब देंहटाएंजो भरम आप तोड़ आये
सुन्दर शेर |
काश बिता वक्त लौट आए.......... बहुत ही सुंदर मनोकामना है अरविंद भाई| आमीन|
जवाब देंहटाएंnice ...bahut khoob.
जवाब देंहटाएंPlease visit my blog.
Lyrics Mantra
Banned Area News
nice ...bahut khoob.
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