"जब तलक गर्मी है साथ खून से" Jab Talak Garmi Hai Sath Khoon Se Poem Lyrics
खनक उठी ये फिज़ाएँ थी जो खामोश,
झूम के चली हवाएँ आपकी गलियों से।
हुआ नजरों का नशा तो होश आया,
बहकते नहीं कदम अब पीने से।
हाल-ए-बयां कैसे हो पल दो पल में,
एक गम है मेरा कई सदियों से।
कहने को तो बहुत है दिल में मेरे,
लेकिन क्या कहें अब एक अजनबी से।
गलियाँ पुरानी पूछती हैं एक सवाल,
कैसा वास्ता मेरा इस आग से।
साथ छोड़ा तुमने बीच सफ़र क्या,
हम रहे नहीं अब किसी सफ़र से।
नाज है हमको इस बात पर भी,
पाया चंद जुल्म हमने भी आप से।
उनको अचरज की हम जिंदा हैं,
शायद बाकी कुछ हिसाब अभी नसीब से।
देखूँ कब पिघलता है पत्थर दिल उनका,
आब-ए-चश्म की तासीर से।
आबाद रहें चमन दुश्मन का हर हाल,
उठती है दुआएँ यूँ कुछ टूटे दिल से।
चाहा तो था हमने जीना शरीफ़ बनके,
तंग नजर रहा हाथ की लकीर से।
"सच" रौशन करेगा आपकी यादें जलकर,
जब तलक गर्मी है साथ खून से।
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