"सच" कुछ बाते हैं दिल की,
एक एक करके कहता हूँ,
एक एक करके समेट लूँगा ।

"सच" यकी रख कोई आने से रहा,
चल आज घर को फिर से सजाते हैं।

"सच" मुझे अब समझाना नहीं,
अँधेरे जहाँ ले चले मुझे जाने दे।

"सच" कभी वक्त निकाल कर आना,
क्या क्या जला है आग में बताउंगा।

"सच" जाने जमाने को क्या हुआ,
देख आदमी बरसों से हंसा ही नहीं ।

"सच" यूँ तो रात भी बड़ी वीरान है,
मगर तेरे बिना दिन भी सूना सा लगे ।
"सच" क्यों किसी से दिल लगाने लगा,
तेरे पास अब टूटने को बाकी क्या है।

"सच" दिल कुछ यूँ जलता है रोज,
आँखों में सदा सावन सा रहता है।

अंधेरों में ही वक्त कट जाए तो अच्छा है,
"सच" न जाने उजाले कितना तड़पाते होंगे।








सच ही खुउबसूरत है रचना। बधाई
जवाब देंहटाएंअंधेरों में ही वक्त कट जाए तो अच्छा है,
जवाब देंहटाएं"सच" न जाने उजाले कितना तड़पाते होंगे।
बहुत खूब ....
सच" यूँ तो रात भी बड़ी वीरान है,
जवाब देंहटाएंमगर तेरे बिना दिन भी सूना सा लगे ।
बहुत बेहतरी से भावों को सांझा किया है आपने ...!
सच कहती हूँ...........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
अनु
"सच" कभी वक्त निकाल कर आना,
जवाब देंहटाएंक्या क्या जला है आग में बताउंगा...
Yes, it happens, which we regret later.
बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।
जवाब देंहटाएं"सच" जाने जमाने को क्या हुआ,
जवाब देंहटाएंदेख आदमी बरसों से हंसा ही नहीं ।
Sach Kaha....
"सच" जाने जमाने को क्या हुआ,
जवाब देंहटाएंदेख आदमी बरसों से हंसा ही नहीं ...
सभी सच हकीकत के करीब से उठाए हुवे हैं ... बहुत खूब ...
"सच" जाने जमाने को क्या हुआ,
जवाब देंहटाएंदेख आदमी बरसों से हंसा ही नहीं ।
gahan abhivyakti ..
sundar rachna.
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंइन पंक्तियों में सच ही लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।