हम उसका नाम 'नोबेल शान्ति' के लिए भिजवा रहे थे Nobel Shanti Poem Lyrics
जनाब सच्चाई तो ये ही है अच्छी लगे या या बुरी,
हम जब सो रहे थे तब विदेशी सांड चर रहे थे.
यहाँ खुद की गलती तो कोई मानने से रहा,
टीवी पर नेता एक दूसरे पर कालिख मल रहे थे.
तुम जब उसके गुनाहों के सबूत जमा कर रहे थे,
हम उसका नाम 'नोबेल शान्ति' के लिए भिजवा रहे थे.
बुद्धिजीवी माथा पच्ची पर अटके थे भाई भतीजावाद को लेकर,
उस वक्त विदेशी 'जीजे' भी खामोशी से राजनीति में घुस रहे थे.
'सच' अब तो तू भी ईमान बेच ही दे मेरे भाई,
सुना कल सेंसेक्स पर कुछ अच्छे भाव मिल रहे थे.