मन की मन ही माँझ रही हिंदी मीनिंग Man Ki Man Hi Majh Rahi Meaning
मन की मन ही माँझ रही हिंदी मीनिंग Man Ki Man Hi Majh Rahi Meaningमन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन
मन की मन ही माँझ रही हिंदी मीनिंग Man Ki Man Hi Majh Rahi Meaning
मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।
भावार्थ : श्री कृष्ण जी के गोकुल छोड़ कर जाने पर उद्धव जी गोपियों को समझाने आते हैं। इस पर कथन है की गोपियों का श्री कृष्ण जी के प्रति प्रेम था लेकिन उनके मन की बात मन में ही रह गई। वह पूर्ण नहीं हो पाई। हम जाकर किससे कहें, कहीं पर इसका महत्त्व नहीं। श्री कृष्ण जी के वापस आने के आस थी इसलिए ही उन्होंने तन और मन की व्यथा सही। उद्धव जी के योग के सन्देश सुनकर बिरह की अग्नि में जल रही गोपियाँ और अधिक दग्ध होने लगी हैं। गोपियाँ कहती हैं की वे चाहती तो श्री कृष्ण जी को गुहार लगा कर बुला सकती थी। अब धीरज किस बात का धारण करें क्योंकि श्री कृष्ण जी अपनी मर्यादा पर स्थापित नहीं रहे।
माँझ -
के मध्य में।
बिथा - व्यथा, कष्ट
आस - आशा।
दही - जलना ।
गुहारि - पुकारना।
के मध्य में।
बिथा - व्यथा, कष्ट
आस - आशा।
दही - जलना ।
गुहारि - पुकारना।