सड़क के किनारे,
पड़ी गरीबी पैर पसारे,
नंगे बच्चे,
एक अदद रोटी को चिल्लाते,
भूखे पेट ही क्यूँ सो जाते है,
आज फिर दिल कुछ पूछना चाहता है,
***
बाप बेचकर अपनी धरती माँ को,
पढ़ाता लिखाता अपने बेटे को,
नौकरी ले जाता कोई सिफारिशी,
हर रात मन ही मन वह क्यूँ रोता है,
आज फिर दिल कुछ पूछना चाहता है,
***
मुट्ठी भर लोगों का शहर,
बना डाला किसने बेगानों का,
सड़क पर बिखरता सिंदूर,
क्यूँ किसी को नहीं दिखाई देता है,
आज फिर दिल कुछ पूछना चाहता है,
***
भ्रष्टाचारी बन रावण,
नंगा नाचता रहता है,
आवारा सरकारी बैल
सब कुछ चरता रहता है,
भगवान भी जाने कब से,
क्यूँ इनको बस देखता ही रहता है,
आज फिर दिल कुछ पूछना चाहता है,
***







samaj ke uper choht karti ek sarthak rachna. bahut khub. aabhar.
जवाब देंहटाएंkabhi waqt mile to hamari rachnao par gaur kare.
जवाब देंहटाएंओह दिल बहुत कुछ पूछना चाहता है ..आज के समय का सही चित्र देती अच्छी रचना ....
जवाब देंहटाएंकुछ शब्द टाइपिंग कि वजह से गलत लग रहे हैं ठीक कर लें ..
बिखरता ..
भ्रष्टाचारी ...
अच्छी प्रस्तुति
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
vatvriksh ke liye yah rachna bhejen rasprabha@gmail.com per parichay aur tasweer ke saath
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतर रचना!
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