रामप्रसाद की सच बोलने की आदत से ना केवल उसके घरवाले, बल्कि उसके रिश्तेदार भी बराबर के परेशान थे। लोगों की माने तो रामप्रसाद का मानसिक संतुलन गडबडा गया था।
आज रामप्रसाद की शादी की सालगिरह थी। काफी सोच विचार के बाद रामप्रसाद ने पत्नी को उपहार में पुस्तक देना तय किया। बाजार से पुस्तक खरीद कर घर लौटते लौटते शाम घिर आई थी। रामप्रसाद ने घर में आते ही देखा की उसकी पत्नी फोन पर किसी से बात कर रही थी।
रामप्रसाद ने पत्नी को कहते सुना "पापा, आपने किस "सच" के पीछे कर दिया है मुझे,..... मुझसे अब और नहीं सहा जाता........मुझे अभी लेने आ जाओ................।"
रामप्रसाद ने पुस्तक मेज पर रखी और वापस बाजार की तरफ चल पड़ा।







ओह , ...मार्मिक स्थिति
जवाब देंहटाएंवह क्या स्थिति है ...शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंटिप्पणी स्वरुप मेरा एक दोहा:-
जवाब देंहटाएंसच पर चलने की हमें,हिम्मत दे अल्लाह.
काँटों से भरपूर है , सच्चाई की राह.
... ufffff ... behad prasanshaneey lekhan !!!
जवाब देंहटाएंvidambana hai...
जवाब देंहटाएंsach akela ho jata hai!!!
jane kyun...