जमीने कम पड़ी जबसे बटवारों में,
जगह दिलों में इंसान के रही नहीं।
चले मंदिर में नया देवता बनाने को,
क्या मन में कोई मूरत अब रही नहीं।
आजमाए तो होंगे आपने चेहरे कई,
दौलत जब आपकी भी रही नहीं।
हम तो जी लेते हैं खामोशी से यहाँ,
आग जहन में आपके क्योँ रही नहीं।
आजमाया हमने आपकी दुनिया को,
कदर अश्कों की आज जहां रही नहीं।
कैसे कह दें आपको दिल वाली बात,
नज़रों में जब कोई गुंजाइसरही नहीं।
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'ajmaya hai hamne apki duniya ko
जवाब देंहटाएंkadar ashkon ki jahan rahi nahi '
alag andaz ki bhavpoorn panktiyan.
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंयह गजल तो बहुत सुन्दर लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंबधाई!
@सुरेन्द्र सिंह जी, सदा जी, डॉक्टर मयंक जी, अमूल्य उत्साहवर्धन हेतु आपका साधुवाद.
जवाब देंहटाएंकैसे कह दें आपको दिल की बात,
जवाब देंहटाएंनज़रों में जब आपकी गुंजाइस कोई , रही नहीं।
... kyaa baat hai ... bahut khoob !!!
बहुत सुन्दर भाव..बेहतरीन गज़ल
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति //
जवाब देंहटाएंनए साल की बधाई
बेहतरीन रचना। बधाई स्वीकार करे।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति लाजवाब है। इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई।
बेहतरीन रचना। बधाई स्वीकार करे।
जवाब देंहटाएं..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
जवाब देंहटाएंनए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसच है इंसान के दिल तंग होते जा रहे हैं .. अच्छी प्रस्तुति है ...
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