"बदलने को आया ये दौर आज" Badalne Ko Aaya Ye Dour Aaj Poem
आप वक़्त के हम वक़्त से ही,
लिए जा रहा वक़्त, कहीं न कहीं।
पाया क्या, क्या छीना वक़्त ने भी,
रहनी कसक, कहीं न कहीं।
बेचैनी कैसी जीने में आपको ,
मार डालिए इंसानियत, कहीं न कहीं।
बड़े एहसान थे नसीब के मुझ पर,
चुकाए अश्कों ने, कहीं न कहीं।
आरजू थी कुछ लम्हों की,
रही वक़्त की कमी, कहीं न कहीं।
ज़माना समझ लेगा गम आपका,
टूट जायेगा भरम, कहीं न कहीं।
क्या छुपा रहा है सैयाद आज हमसे,
राजदार नजरें, कहीं न कहीं।
मौजे उठा करती दिल से इजहार को,
वक़्त बीतता यूं ही, कहीं न कहीं।
हो चला एक अरसा दर दर भटकते,
माँग लीजिए जगह, कहीं न कहीं
बदलने को आया ये दौर आज,
उठ रहा धुआं, कहीं न कहीं।
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