बहुत जी चुके खुद की खातिर,
आज तो गैरों के हो मर जाइए।
माना जमाना रौशन है आप से,
चंद रोशनाई तो इसे देकर जाइए।
फकर हो चमन को जिस पर,
वो फूल खाक पर खिला कर जाइए।
जमाना तो तमाशबीन रहा हमेशा,
वीरान चेहरों को आप हँसा जाइए।
वक़्त बीत रहा अँधेरों में आपका,
अश्क पीकर मुस्कुराकर जाइए।
मिल जाएगा इक दिन खुदा आपको,
इन चेहरों में गौर से ढूंढते जाइए।
देखें कैसे फैलती है नफरत की आग,
आप प्यार को बस फैलाते जाइए।
"सच" उलझने सुलझ जायेंगी सारी,







जमाने का तमाशबीन बने रहना ..और आपका किसी वीरान चेहरे को हंसाने का आग्रह करना आपकी मानवीय सोच को प्रदर्शित करता है ...बहुत उम्दा भाव ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति लाजवाब है। आपकी रचनाएँ जीने का अंदाज़ सिखाती हैं। मन को गहरे तक छूती हुई इस उम्दा रचना के लिए आभार।
मेरी तरफ से नए साल की हार्दिक शुभकामनाए।
जवाब देंहटाएंदेखें कैसे फैलती है नफरत की आग
आप प्यार को बस फैलाते जाइए।
बिल्कुल सही है जी।
मेरी तरफ से नए साल की हार्दिक शुभकामनाए।
देखें कैसे फैलती है नफरत की आग
आप प्यार को बस फैलाते जाइए।
बिल्कुल सही है जी।
.........प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएं2011 का आगामी नूतन वर्ष आपके लिये शुभ और मंगलमय हो,
हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
बेहतरीन ! कभी ग़ेरों क्र लिए भी कुछ कर पाए तो क्षणभंगुर जीवम सफ़ल हो जाए ! आपको नव वर्ष मुबारक !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत संदेश...
जवाब देंहटाएंसर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
जवाब देंहटाएंसर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .
नव - वर्ष २०११ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
अच्छी सोंच.अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है .. प्यार से सब कुछ सुलझ जाता है ....
जवाब देंहटाएं'mil jayega.................
जवाब देंहटाएं..............gaur se dekhte jaiye.'
achchhe bhav!
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब है....शुक्रिया इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के लिए..!!
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