"बहुत जी चुके खुद की खातिर" Bahut Ji Chuke Khud Ki Khatir Poem
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बहुत जी चुके खुद की खातिर,
आज तो गैरों के हो मर जाइए।
माना जमाना रौशन है आप से,
चंद रोशनाई तो इसे देकर जाइए।
फकर हो चमन को जिस पर,
वो फूल खाक पर खिला कर जाइए।
जमाना तो तमाशबीन रहा हमेशा,
वीरान चेहरों को आप हँसा जाइए।
वक़्त बीत रहा अँधेरों में आपका,
अश्क पीकर मुस्कुराकर जाइए।
मिल जाएगा इक दिन खुदा आपको,
इन चेहरों में गौर से ढूंढते जाइए।
देखें कैसे फैलती है नफरत की आग,
आप प्यार को बस फैलाते जाइए।
"सच" उलझने सुलझ जायेंगी सारी,