फिर भी भरम रखता है आदमी Phir Bhi Bharam Rakhata Hai Poem Lyrics
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शौक जीने का रखता है आदमी,
रोज जीने को मरता है आदमी।
कोशिश तो खुदा को समझने की,
खुद को समझता नहीं है आदमी।
खुदा जाने कैसा रंग है चेहरों का,
हर बार जो बदलता है आदमी।
रोज बोलने की आदत रही नहीं,
अब कभी कभी बोलता है आदमी।
शायद वक्त ने छीना जीने का बहाना,
फिर ख़ाक में कुछ ढूंढता है आदमी।
"सच" जानता है टूटना इक दिन,
फिर भी भरम रखता है आदमी।
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