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साथ अँधेरों का निभाना बहुत था Sath Andhero Ka Poem Lyrics


साथ अँधेरों का निभाना बहुत था,
टूटे ख्वाबों को सजाना बहुत था। 

कैद- ए-गम- ए- दिल में ही रहे,
यूं तो ज़िंदगी में वक़्त बहुत था। 

दिल-ए-नादां अब बहलता नहीं,
इसे हमने ही बहकाया बहुत था।

एक ख्वाब जो गुम हुआ कहीं,
जब मिला तो अजनबी बहुत था। 

हो गया परिंदा लकीरों के हवाले,
याद नसीब ने उसे रखा बहुत था। 

जहन में उठते हैं जो कई सवाल,
जवाब होता तो एक ही बहुत था। 

"सच" उठता रहा जो धुआँ हर बार,
अश्कों की नमी में वो गीला बहुत था। 

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