साँसों का खजाना जिसके हाथ है रे।
करने लगा मनमानी जग में आकर,
भूला की होना एक दिन हिसाब है रे।
किसको ढूँढता हैं मंदिर मस्जिद में,
कण कण में उसका तो वास है रे।
नेकी के सिवाय क्या है साथ जाना,
किस पर तुझको यूं अभिमान है रे।
हरी को सुमर ले जब तक साथ शरीर,
होना है बेबस बुढ़ापा उसका नाम है रे।
दूसरों को रुला जो हँसकर है जी रहा,
जीना उसका भी यहाँ धिक्कार है रे।
तू भूखों को खिला, तू रोतों को हँसा,
इससे बढ़कर क्या धर्म का काम है रे।
भगवान को भी आना पड़ता है वहाँ,
इंसान का इंसान से जहां प्यार है रे।
क्यों आज तू "सच" जो बोल नहीं पाता,
बरसों से इस आत्मा पर बहुत बोझ है रे।
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यही तो आदमी नहीं सोचता..
जवाब देंहटाएंइस रचना के द्वारा आपने अच्छी सीख दी है। आभार।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन !!
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई को उकेरा है आपने.
हार्दिक शुभ कामनाएं आपको !!
सत्य वचन !!
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई को उकेरा है आपने.
हार्दिक शुभ कामनाएं आपको !!
सत्य वचन !!
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई को उकेरा है आपने.
हार्दिक शुभ कामनाएं आपको !!
यही सब सोच लें तो दुनियां स्वर्ग हो जाए...बहुत सार्थक सोच और उसकी सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंतू भूखों को खिला, तू रोतों को हँसा,
जवाब देंहटाएंइससे बढ़कर क्या धर्म का काम है रे।
भगवान को भी आना पड़ता है वहाँ,
इंसान का इंसान से जहां प्यार है रे।
सुंदर ... अर्थपूर्ण पावन विचार लिए पंक्तियाँ
bahut hi sunder lika hai aapne
जवाब देंहटाएंजो कण कण में है , उसे लोग ढूंढते हैं और उसके होने का प्रमाण मांगते हैं । अजीब है मानसिकता । बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना।
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती रचना ! सचमुच नेकी के सिवा कुछ भी पाने योग्य नहीं है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना।
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
बहुत सुन्दर, आभार।
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जन्मदाता के प्रति जवाबदेही और मानवता को समर्पित अच्छे भाव....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है .सटीक ..आभार
जवाब देंहटाएंकिसको ढूँढता हैं मंदिर मस्जिद में,
जवाब देंहटाएंकण कण में उसका तो वास है रे।
सार्थक संदेश देती हुई सुंदर रचना।