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शांति बाई




आपने सदैव ही मार्गदर्शन देकर हौंसला बढ़ाया है, आपका शुक्रिया।  
"कहानी घर" में आपका हार्दिक स्वागत है। 
(यहाँ लघु कथाओं के माध्यम से मैंने कुछ घुटन कम करने की कोशिश की है )

शांति बाई कहानी "कहानी घर" में पूर्व में Post कर चुका हूँ। 

शांति बाई का पति अब इस दुनिया में नहीं था। वो टेंपू चलाता था। एक रोज टेंपू पलटने से उसकी मौत हो गयी। शांति बारहवीं पास थी। रामप्रसाद से शांति की मुलाक़ात तब हुई जब वो चपरासी की नौकरी के लिए दफ्तर में आई। शायद उसके अच्छे व्यवहार और काम करने की लगन के कारण ही बड़े साहब ने उसे तुरंत नौकरी पर रख लिया। शांति बाई ने रामप्रसाद को बताया की उसका दुनिया में कोई नहीं हैं। ससुरालवालों ने तीन लड़कियां होने के कारण उसे घर से निकाल दिया बूढ़े पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए वो शहर में किराये के मकान में रहा करती है।

शांति लगभग पंद्रह दिनों तक काम पर आती रही मगर इसके बाद वो फिर कभी कार्यालय में नहीं दिखी। रामप्रसाद को न जाने क्यों उसकी चिंता सी होने लगी थी।

एक रोज रामप्रसाद बाजार से लौट रहा था। उसने शांति के मकान पर जाकर खैर खबर जानने की सोची। लोगों से पूछते - पूछते आखिरकार रामप्रसाद शांति के मकान पर पहुँच गया। छोटे से कमरे में उसकी लड़कियां पढ़ाई कर रहीं थी। कमरे में बिस्तर के पास शांति बाई के स्वर्गीय पति की फोटो टकी थी।  कमरे में सामान के नाम पर एक संदूक के अलावा और कुछ भी न था। शांति बाई ने जब रामप्रसाद को देखा तो एक बार तो उसके चेहरे के सारे भाव अचानक ही गायब हो गए।  मगर थोड़ी ही देर में उसने खुद को संभालते हुए रामप्रसाद को अंदर आने को कहा। उसने स्टोव जलाना चाहा तो रामप्रसाद ने मना कर दिया।


"बाई ( बहन ) तुम कई दिनों से काम पर नहीं आई। शहर आया था तो सोचा तुम्हारी खैरियत पूछता चलूँ..... सब ठीक तो है न...।" रामप्रसाद ने पूछा।

"क्या बताऊँ भाई साहब आपको.....अब मैं काम पर नहीं आऊँगी। मैं कालू ठेकेदार के यहाँ नमक के खेतों में मजदूरी करने जाती हूँ। काम धूप का है, पूरे दिन धूप में खड़े होकर नमक को सुखाना पड़ता है पढे लिखे लोगों की बात दूसरी है। वहाँ पंखे चलते रहते हैं...।"

"मगर तुमने दफ्तर का काम छोड़ा ही क्योँ.....अगर बात पैसे की है तो हम सब मिलकर साहब से बात करेंगे।"

बात पैसे की नहीं......वो.......एक रोज बड़े साहब ने मुझे घर पर काम करने के लिए बुलाया था। घर पर उन्होने मेरे साथ ...............अब रहने दो.......भाई साहब, मेरी मानेगा भी कौन। मेरी ही किस्मत खराब है....किसी का क्या दोष......आज बबली के पापा होते तो मैं यूँ दर दर न भटकती। भले ही कालू ठेकेदार कम पैसा देता है, पूरे दिन धूप में काम करवाता है,  मगर वहाँ मुझे कोई गंदी नजर से तो नहीं देखता।"   बाई ने बहते आंसुओं को पल्लू से पोंछते हुये जवाब दिया।

"बाई तुम मुझे भाई कहती हो....मैं तुम्हारी नौकरी कहीं अच्छी जगह लगवाने की कोशिश करूँगा.....तब तक तुम ये दो हजार रुपये रख लो......ये कोई एहसान नहीं जब तुम्हारे पास हों तब लौटा देना...देखो, मुझे गलत मत समझना.....।"

शांति बाई ने पैसे लेने से साफ़ मना कर दिया। आखिर उसकी जिद के आगे हारकर रामप्रसाद भी लौट आया। कुछ ही दिनों में रामप्रसाद ने बाई के लिए एक अच्छी जगह काम ढूंढ लिया। रामप्रसाद बाई को काम के बारे में बताने जब उसके मकान पर पहुँचा तो पड़ौसियों से पता चला की बाई काम की तलाश में शहर छोडकर कहीं जा चुकी थी।
◘◘◘


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मेरे बारे में...
रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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15 Comments
15 टिप्पणियां:
  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. मेहनत से कमा कर खाना भी कितना मुश्किल है ....सच का आइना कहानी...

    जवाब देंहटाएं
  3. हर जगह नारी का शोषण करने के लिए कुछ भेडिये बैठे होते हैं ... मार्मिक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. मुश्किल समय मे भी कुछ लोग अपना ईमान नहीं खोते ...
    प्रेरक कथा !

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी प्रेरणास्पद कथा... लेकिन ब्लाग से मेंढ़कों को हटायें..

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  6. भारतीय नागरिक2 जून 2011 को 9:42 pm बजे

    अब अच्छा लग रहा है... नीचे से उछलने वाले मेंढ़कों से निजात मिली...

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  7. यथार्थ दर्शन कराती कहानी.....

    समाज में ऐसे गिद्धों की कमी नहीं है जो नारी देह का मांस ही नोचना चाहते हैं , बड़ा दुखद है कि ईश्वर के कोप का भाजन हुई शान्ति जैसी नारियां मेहनत करके भी अपना और अपने बच्चों का पेट पोषण तक नहीं कर पातीं |

    जवाब देंहटाएं
  8. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

    जवाब देंहटाएं

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