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विधाता की लिखी कौन टाले ? Vidhata Ki Likhi Koun Tale


कहते हैं की विधाता ने यदि भाग्य में यदि धन संपदा, सुख संपति लिखी ही नहीं हैं तो स्वंय भगवान भी विधाता के इस लेख को बदल नहीं सकते हैं, मेरी दादी अक्सर एक कहानी सुनाती थीं :-

एक गाँव में गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। परिवार में  तीन सदस्य थे, माता, पिता और उनका एक लड़का। तीनों सदस्य ही भगवान के पक्के भक्त थे, ऐसा कोई दिन नहीं बीतता था जब वे नियत समय पर पूजा अर्चना ना करें, अपने ईश को याद ना करें। उनकी इस भक्ति से स्वंय भगवान भी प्रशन्न थे ।

एक बार शिव जी, माता पार्वती के साथ भ्रमण को निकले। जब वे ब्राह्मण के परिवार के पास से गुजर रहे थे तो माता पार्वती ने शिव जी से प्रश्न पूछा:- "स्वामी, ये क्या अंधेर मचा रखी है? ये ब्राह्मण परिवार आपको सच्चे मन से पूजता है, आप में श्रद्धा रखता है, आपका भक्त है, फिर भी ये इतने निर्धन क्यों है, आपने इनको कुछ भी नहीं दिया, जबकि इसी गाँव के अन्य सभी लोग समृद्ध हैं, ऐसा क्यों?

शिव जी ने बड़े ही शांत भाव से उत्तर दिया "ऐसा नहीं है की इनको कुछ भी नहीं दिया, लेकिन ये "भाग के चांदड़े हैं" अर्थार्थ, इनके भाग्य में लक्ष्मी नहीं लिखी है।"

पार्वती:- "नहीं स्वामी ऐसा कुछ भी नहीं होता, इनके साथ ये व्यवहार ठीक नहीं है, आज तो आपको इनको धन देकर ही जाना पड़ेगा।"

शिव:-"नहीं रानी ये व्यर्थ होगा, विधाता के लेख को में भी टाल नहीं सकता हूँ।"

पार्वती:- "स्वामी में आज ये ही देखना चाहती हूँ की जब आप स्वंय इस ब्राह्मण परिवार को धन दें और इन्हे मिले नहीं, आज तो आपको इन्हें धन देना ही होगा।"

शिव जी ने पार्वती के हठ को समझते हुये कहा " यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो में स्वंय जाकर इन्हे वरदान देता हूँ, लेकिन तुम्हें यहीं से देखना होगा।"

शिव जी ने साधु का वेश धारण करके ब्राह्मण के द्वार पर आवाज लगाई " अलख निरंजन"। ब्राह्मण की बूढ़ी पत्नी ने कहा "अरे भाई कोई दूसरा घर देखो, यहाँ कुछ नहीं मिलने वाला, यहाँ तो हमारे ही खाने के लाले पड़े हैं ।"

शिव जी:- "माता, द्वार तो खोलो , आज में कुछ लेने नहीं  देने आया हूँ ।"

ब्राह्मण ने दरवाजा खोलकर कहा " भाई तुम तो खुद ही फकीर हो, हमें क्या दोगे?"

मजबूर होकर शिव जी को अपने असली रूप में आना पड़ा।  शिव जी ने कहा की "मैं तुम्हारी भक्ति से प्रशन्न हूँ, तुम तीन सदस्य हो, तीनों तीन वरदान मांग सकते हो।" पहला वरदान मांगने के लिए ब्राह्मण की पत्नी आई। ब्राह्मण की पत्नी शिव जी को एकांत में लेकर गयी और कहने लगी  "महाराज, मेरी पूरी उम्र इस बूढ़े ब्राह्मण की सेवा करते करते ही बीत गयी, मुझे इस जीवन में सुख का एक क्षण भी नहीं मिला, अब बुढ़ापे में  ये ब्राह्मण पूरी रात खाँसता रहता है, सोने भी नहीं देता है, ऐसा कीजिये की आप मुझे दुबारा से यौवन देकर सुंदर युवती बना दे, जीवन के सुख तो भोग लूँ ।"

शिव जी ने समझाया की तुम चाहो तो धन दौलत मांग सकती हो। लेकिन वो अपनी बात पर अड़ी रही। शिव जी के आशीर्वाद देते ही बुढ़िया यौवन से भरपूर सुंदर युवती बन गयी, और छमक छमक करते गांव में निकल पड़ी। पास से ही राज्य के राजाजी की सवारी निकल रही थी। राजा ने जैसे ही उस सुंदर युवती को देखा अपने सैनिकों को आदेश दिया की तुरंत ही इस युवती के पकड़ कर हमारे पास ले आओ, हम इसे अपनी रानी बनाएँगे। कुछ ही देर में वो हाथी पर सवर हो गयी, तभी ब्राह्मण ने शिव जी से कहा की "महाराज ये आपने क्या किया, बुढ़ापे में इस बुढिया का ही तो सहारा था, बुढिया ने ये ठीक नहीं किया, आपने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा, में आपसे अभी वरदान मांगता हूँ की मेरी पत्नी को इसी क्षण "हेली" (सूअर) बना दो, तभी इसकी समझ में आएगा, बुढ़ापे में छोड़कर जा रही है।"

शिव जी ने ब्राह्मण को समझाया की यदि वो चाहे तो धन दौलत मांग सकता है। ब्राह्मण के अपनी बात पर अड़े रहने पर शिव जी के आशीर्वाद देते ही राजाजी के पास बैठी ब्राह्मण की पत्नी सूअर बन गयी। राजा ने विचार किया की हो ना नो ये जरूर ही कोई मायावी शक्ति है। उसने सैनिकों को आदेश दिया दिया की उसको हाथी से नीचे गिरा दिया जाए। सैनिकों ने जरा भी देर ना लगाई। अब ब्राह्मण की पत्नी नालियों में कीचड़ खाने लग गयी। गाँव के बच्चे "हेली" "हेली" कहकर उसे पत्थरों से मारने  को दौड़ने लगे।

बेटे से ये सब देखा ना गया और उसने शिव जी कहा " महाराज अब मेरे पास मांगने को बचा ही क्या है, आप से विनती है की मेरी माँ को पहले जैसी बना दीजिये, मुझे और कुछ नहीं मांगना।"

शिव जी के तथास्तु कहते ही ब्राह्मण की पत्नी दुबारा अस्सी साल की नारी बन गयी, और ब्राह्मण को कोसते कोसते घर  को लौट आई।

शिव जी पार्वती के पास आए और कहा " मैं ना कहता था, इनके भाग्य में धन लिखा ही नहीं है, ये चाहते तो तीन वरदान में तीन लोक मांग सकते थे, लेकिन ये "कर्म के चांदड़े" हैं, विधाता के लेख को कोई नहीं टाल सकता है।"

पार्वती ये अब स्वीकार कर लिया था की विधाता के लिखे लेख को कोई टाल नहीं सकता है।

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