लगता है जो खामोश बरसों से, ये आदमी है,
एक अदद जीने को, रोज मरता है यहाँ।
दादा झूठी सुनाई तूने, सच की विजयी कहानी,
देख तेरा सच तो अब, सरे आम हारता है यहाँ।
बापू, उसूलों को वक्त कि जंग खा रही एक अरसे से,
ताक पर रखें हैं बचे कुछ उसूल तेरे, गर्त खाते हैं यहाँ।
खामोशी से गूंगे बन चुके हैं, आदमी के वीरान चेहरे,
खामोश जबानों पर भी, लगता है पहरा यहाँ।
चौराहे पर इमानदारी बिक रही थी, बेईमानों के हाथों,
"सच" भी अब "ईमानदार" कहने से कतराता है यहाँ।
कभी वक़्त मिले तो इस मूरत से बाहर झाँक,
तुझे, तेरा इजादी आदमी, बीच बाजार बेचता है यहाँ।
हमने माना कि सच का दामन काँटों से उलझा है,
सच का दिया मन में जला, कोई मुस्कुराता हुआ, चला आता है यहाँ







bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो मुझे तुमसे डर लगता है
जवाब देंहटाएंउसे इक्र्रार ए वफ़ा का नाम दो ...
vatvriksh ke liye apni ye rachnayen bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer aur blog link ke saath
आज के आदमी का सच उतार दिया।
जवाब देंहटाएंकविता के माध्यम से बहुत कुछ कह गए ......अरविन्द जी..
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द सही है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है .......
जवाब देंहटाएंआज के आदमी का सच उतार दिया.....
कविता के माध्यम से बहुत कुछ कह गए ......
अरविन्द जी..
आज के सन्दर्भों को बखूबी सामने ला दिया आपने इस रचना के माध्यम से ...बहुत आभार
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी धन्यवाद। अब जब आपने बताया तो मेरा दिल भी शान्त नही रह सका। हमारे इंस्टीच्युट में एक ऐसी लड़की पढ़ रही है जिसके पिता का देहान्त हो गया है। उसके परिवार का खर्च वहन उसके चाचा जी करते है। एक दिन वो हमारे पास आई और उसने कहा वो पढ़ना चाहती है लेकिन उसके पास फीस के पैसे देने के लिए नही है। मैने उसकी मॉं से बात करके उसे मुफ्त में पढ़ाना ‘शुरू कर दिया। जहॉं तक सभी इंसानों से होता है निशक्त लोगों की मदद करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंआज के इंसान का नंगा सच। बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति
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जवाब देंहटाएंजब बईमानी का बोलबाला होता है तो इमानदार को चुप होना ही पड़ता है। लेकिन फिर भी ऐसे बहुत से दिल हैं जहाँ सच का दिया जल रहा है और सर्वत्र प्रकाश है। आभार इस सुन्दर प्रस्तुति का।
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...अच्छे भाव।
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