हमारैं हरि हारिल की लकरी हिंदी मीनिंग Hamare Hari Haril Ki Lakari Meaning
हमारैं हरि हारिल की लकरी हिंदी मीनिंग Hamare Hari Haril Ki Lakari Meaning : Soordas Ke Pad
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ क
हमारैं हरि हारिल की लकरी हिंदी मीनिंग Hamare Hari Haril Ki Lakari Meaning : Soordas Ke Pad
हमारैं हरि हारिल की लकरी।मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौ लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी।
or
हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन बच क्रम नंदनंद सों उर यह दृढ़ करि पकरी॥
जागत, सोबत, सपने सौंतुख कान्ह-कान्ह जक री।
सुनतहि जोग लगत ऐसो अति! ज्यों करुई ककरी॥
सोई व्याधि हमें लै आए देखी सुनी न करी।
यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै जिनके मन चकरी॥
हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन बच क्रम नंदनंद सों उर यह दृढ़ करि पकरी॥
जागत, सोबत, सपने सौंतुख कान्ह-कान्ह जक री।
सुनतहि जोग लगत ऐसो अति! ज्यों करुई ककरी॥
सोई व्याधि हमें लै आए देखी सुनी न करी।
यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै जिनके मन चकरी॥
हिंदी भावार्थ : इस पद में गोपियाँ उद्धव जी से कहती हैं की उनके हरी, इश्वर तो उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी बड़े जतन से लकड़ी को पकडे रखता है वैसे ही गोपियाँ इश्वर के नाम का आधार रखती है। आशय है की जैसे हारिल पक्षी अपने पंजो में एक लकड़ी को कसकर पकड़े रखता है वैसे ही गोपियों के हृदय में श्री कृष्ण जी के नाम के प्रति अगाध आस्था और समर्पण है। उन्होंने मन, वचन और कर्म से कृष्ण के प्रति समर्पण स्थापित किया है। जागते सोते, सपने में वे श्री कृष्ण जी का नाम जप्ती हैं। तुम्हारे योग की बाते जब हम सुनती हैं तो कड़वी ककड़ी की भाँती से हमें लगती हैं। तुम तो एक अजीब सी मुसीबत हमारे लिए लेकर आये हो जिसके बारे में हमने सुना तक नहीं है। तुम्हारा योग का सन्देश तुम उनको सुनाऊँ जो श्री कृष्ण जी की भक्ति में पूर्ण रूप से जकड़े हुए नहीं हैं।
अतः इस पद का आशय है की गोपियाँ उद्धव जी के योग का सन्देश खारिज कर रही हैं। वे श्री कृष्ण जी से अपने प्रेम की दृढ़ता को हारिल पक्षी की लकड़ी से तुलना करते हैं। गोपियाँ मनसा, वाचा और कर्मणा श्रीकृष्ण जी के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करती हैं। वे स्वप्न और प्रत्यक्ष दोनों ही स्थिति में कान्हा कान्हा नाम को रटती रहती हैं। योग/जोग का सन्देश उनके लिए कड़वी ककड़ी के सामान हैं। गोपिया ब्रह्मोपासना या योग-साधना को एक रोग की भाँती कहती हैं और उसे व्याधि/ब्याधि घोषित करती हैं। अंत में वे कहती हैं की वे अपने योग का सन्देश उसे दें जिसका मन चंचल है, जो श्री कृष्ण जी के प्रति दृढ समर्पण को रखती हैं उनके लिए योग का कोई महत्त्व नहीं है।