मैंने तो इसे पहली बार देखा है Maine To Ise Pahali Bar Dekha Hai Short Story
जाने क्यों हम हम स्वंय को ऐसा दिखाना चाहते है जो शायद हम वास्तव में है ही नहीं, जो हमारी पहचान है ही नहीं । क्यूँ हम अपने को दूसरों से उत्कृष्ठ एंव अलग जगह पर रखना चाहते है। हो सकता है की ये भी पाश्चात्य संस्कृति का ही कोई दुष्परिणाम हो । लेकिन यह भी तो सच है की कोई गुलाब कभी रंग चढ़वाने किसी रंगरेज के पास कभी नहीं जाता है।
जब रामप्रसाद सीकर में कार्यरत था तो उसी समय उसके एक अधिकारी स्थानांतरित होकर सीकर के कार्यालय में आए। वे प्रारंभ से ही अपने को दूसरों से अलग दिखना चाहते थे या फिर दूसरों से ज्यादा सभ्य, संभ्रांत ही, लेकिन ये तो साफ़ था की वो " आम " लोगो से दूर ही रहना चाहते थे। एक शाम जब बच्चे मैदान में खेल रहे थे तो रामप्रसाद भी टहलने को निकला। उसी समय वे अधिकारी महोदय अपने परिवार के साथ " Evening Walk" पर निकले। तभी विद्यालय के मुख्य द्वार से कुछ सूअर अंदर आ धमके। उन्हें देखकर अधिकारी महोदय ने कहा " अरे ये क्या है? " रामप्रसाद ने कहा " इनको कौन नहीं जानता साहब, इन्हें सूअर कहते है." "नहीं नहीं , मैंने तो इनको पहली बार ही देखा है. " अधिकारी महोदय ने बड़ी मासूमियत के साथ फरमाया। तभी उनका छोटा सा बालक तपाक से बोल पड़ा " अरे पापा ये तो काले है. ........ दादाजी ने तो सफ़ेद वाले पाल रखे है।"
बालक की निश्चल बात सुनकर साहब जरा झेंप जरुर गए, लेकिन उस समय साहब का चेहरा देखने लायक था।
☺☺☺
शब्दवाणी:-
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-