आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,
बहुत मर लिया, अब जीना चाहता हूँ,
फैलाये ज़िंदगी ने कुछ यूं रंग,
रंग लगने लगे सब बदरंग,
ठंडा हुआ सीना, सुलगती आग से,
बोलता रहा सोच सोच के,
सच कहूँ तो,
आज मैं बिना सोचे बोलना चाहता हूँ,
आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,
बहुत मर लिया, अब जीना चाहता हूँ,
झुकी गर्दन , आँख नीचे, सच से कतराता रहा,
हिदायतों की पोटली हर मोड पे उठाता रहा,
गले तक भर आए, निगले जो जहर के घूंट हैं
सच कहूँ तो,
आज मैं जहर उगलना चाहता हूँ,
आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,
बहुत मर लिया, अब जीना चाहता हूँ,
जीने को हजार मुखौटे बनाए,
चेहरे पे चेहरे जाने कितने चढ़ाये,
समझ से कमा खाया हूँ, बुद्धि की नहीं,
सच कहूँ तो,
आज मैं मन की कहना चाहता हूँ,
आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,
बहुत मर लिया, अब जीना चाहता हूँ,
चुप रहा ज़िंदगी भर, रहा ठेठ बहरा,
बैठाया आँख कान पे बुद्धि का पहरा,
लगाई लगाम जबान को,
जंग खाई जबान से ही सही,
सच कहूँ तो,
आज मैं चीखना चाहता हूँ,
आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,
बहुत मर लिया, अब जीना चाहता हूँ,
देख नहीं पाया मैं,
तितली की कलाबाजी, भँवरों का गाना,
किसी बच्चे का बस यूं ही मुसकुराना,
तोड़ जमाने के बंधन सारे,
सच कहूँ तो,
पंछी बन उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहता हूँ,
आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ,
बहुत मर लिया, अब जीना चाहता हूँ,
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bahut pyaaree kavita...
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