अनवर रामप्रसाद का अजीज दोस्त था। अनवर शहर से गांव को जाने वाली सड़क के किनारे ही रहता था। रामप्रसाद से उसकी मुलाकात उस समय हुई थी जब रामप्रसाद स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। विश्वविद्यालय जाने वाले रास्ते पर ही वह अपना टेम्पो चलाता था। टेम्पो अनवर के लिए "मूमल" था। मजाल की कोई मामूली सी खरोंच या दाग धब्बा लग जाए। टेम्पो में दुनिया भर की सजावटी चीजे लगा रखी थी अनवर ने। स्वभाव से अनवर बड़ा ही खुशमिजाज था।
अनवर के परिवार में उसकी माँ के अलावा उसका कोई और नहीं था। शादी अनवर ने इसलिए नहीं की क्योंकि उस के मुताबिक आजकल की औरते विश्वास के काबिल नहीं है, और न ही वो उसकी बूढी माँ की सेवा करेगी। अनवर पढ़ना तो चाहता था लेकिन स्कूल जाने का वक्त ही नहीं मिला। समय बीतने के साथ साथ उससे रामप्रसाद से दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी। शाम को अक्सर रामप्रसाद और अनवर चाय की दुकान पर मिला करते थे।
एक दिन अनवर बड़ा ही उदास दिखाई दिया तो रामप्रसाद ने पूछा " क्या बात है अनवर, आज सवारियां कम मिली क्या ?, आज बड़ा चुप - चुप सा बैठा है?"
काफी देर बाद उसने जवाब दिया " नहीं ऐसी बात नहीं है, मेरी माँ की तबियत बहुत खराब है। कल डॉक्टर को दिखाना है। "
इस मुलाकात के बाद कुछ दिनों तक रामप्रसाद और अनवर की मुलाक़ात नहीं हुई। रामप्रसाद को भी बड़ा सूनापन लग रहा था, अनवर से न मिलने पर। एक दिन चाय वाले से अनवर के घर का पता लेकर रामप्रसाद उससे मिलने उसके घर पहुंचा।
गली में खेल रहे बच्चों से रामप्रसाद ने अनवर के घर का पता पूछा तो उन्होंने अनवर के घर पर छोड़ दिया और बताया की उसकी तबियत ठीक नहीं है। अनवर के घर जाकर रामप्रसाद ने कुछ संकोचवश आवाज दी....कोई है ?"
"अंदर आ जाओ".....घर के अंदर से आवाज आई। रामप्रसाद को अनवर की आवाज को पहचानने में देर नहीं लगी। अंदर अनवर खाट पर लेटा था। " क्या बात....अनवर कई दिनों से दिखाई ही नहीं दिए ?....और तुम इतने कमजोर कैसे दिखाई दे रहे हो ? राम प्रसाद ने चिंता जताते हुए पूछा। अनवर ने कुर्सी की और बैठने का इशारा करते हुए कहा " वो.....मेरी माँ के पेट में गाँठ थी। ऑपरेशन का खर्चा बहुत था.......चालीस हजार मांग रहा था डॉक्टर। मैंने पैसों के खातिर काफी कोशिश की लेकिन बात बनीं नहीं......सभी जान पहचान वालों से भी बात की लेकिन .......मजबूर होकर मैंने अपना टेम्पू बेच दिया।" कहते कहते वो भभक कर रो पड़ा..... ये अल्लाह भी जाने क्यों मेरे ही पीछे हाथ धो कर पड़ा है......रुपये लेकर जब मैं अस्पताल पहुँचा तो डॉक्टर ने बताया की मैंने बहुत देर कर दी ..... अब मेरी माँ इस जहान को सदा के लिए अलविदा कहकर चली गयी थी....मेरा माँ के अलावा कोई नहीं है।" कहते-कहते अनवर फूट फूट कर रोने लगा।
रामप्रसाद अनवर को एक शब्द भी नहीं कह पाया।
अनवर के घर से रामप्रसाद वापस आ तो गया लेकिन सारी रात सोचता रहा की पैसा न होने के कारण किसी बेटे के लिए अपनी माँ को आँखों के सामने मरते देखना कितना पीड़ादायक रहा होगा ?







लेकिन सारी रात सोचता रहा की पैसा न होने के कारण किसी बेटे के लिए अपनी माँ को आँखों के सामने मरते देखना कितना पीड़ादायक रहा होगा ? वाकई दर्दनाक और मार्मिक.
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