-->

"अरे वाह ! आनंद आ गया" Are Wah Aanand Aa Gaya Short Story



नकल करना सदैव ही अप्रत्याशित आफतों को न्यौता देना सिद्ध होता है। बचपन में सुनी 'नकलची बंदर' की कहानी इसका प्रमाण है।  इसी से संबंधित "राजस्थानी लोक कथा" जो कई रूपों में प्रचलित है , कुछ इस तरह से है :-

एक बार एक अंधे व्यक्ति को किसी की शादी में दावत पर आमंत्रित किया गया। भीड़ भाड़ के कारण उसके साथ आए व्यक्ति से उसका साथ छूट गया। थोड़ी देर बाद भोजन शुरू होने पर सभी अतिथियों को पंक्ति में बैठने का निवेदन किया गया। अंधा व्यक्ति किसी तरह से पंक्ति में तो बैठ गया लेकिन उसे लगातार यह चिंता सताए जा रही थी की भोजन में कई प्रकार की चीजें होंगी, उसे कैसे पता चलेगा की परोसने वाला क्या लेकर आया है। अंधे व्यक्ति ने काफी सोच विचार करके मन ही मन निर्णय लिया की पास वाला जो भी माँगेगा, वो ही मैं भी मांग लूँगा।

भोजन शुरू हुआ, अंधे व्यक्ति के पास बैठे व्यक्ति ने कहा " अरे वाह, जलेबी आ गयी है।" अंधे व्यक्ति ने मन ही मन सोचा की जरूर जलेबी वाला आया है। उसने तुरंत ही कहा " थोड़ी जलेबी मुझे भी डालना"। जलेबी परोसने वाले ने उसे भी जलेबी परोस दी। थोड़ी देर में पास बैठे व्यक्ति ने कहा " अरे वाह, लड्डू आ गया है"। अंधे व्यक्ति ने अनुसरण करते हुये कहा " थोड़े लड्डू मुझे भी डालना"। लड्डू परोसने वाले ने लड्डू परोस दिये।

अंधे व्यक्ति के पास बैठे व्यक्ति ने भोजन समाप्त करके पेट पर हाथ फेरते हुये कहा  "अरे वाह!  आनंद आ गया"। अंधे व्यक्ति ने मन ही मन सोचा "लगता है कोई नए प्रकार का पकवान है, पहले तो कभी खाया नहीं"। अंधे व्यक्ति ने तुरंत ही कहा " थोड़ा आनंद मुझे भी डालना"। पास से गुजर रहा परोसने वाला भी थोड़ा मज़ाकिया किस्म का था। उसने एक गोल पत्थर को चासनी में डुबोकर अंधे व्यक्ति की थाली में परोस दिया। उसे खाने के चक्कर में अंधे व्यक्ति के सारे दाँत जड़ तक हिल गए, लेकिन खा नहीं पाया। झल्लाकर उसने उस आनंद (पत्थर) को ज़ोर से फेंक मारा। पत्थर जाकर सीधा दूल्हे के पिताजी के माथे पर बजा। दूल्हे का पिता माथा पकड़कर ज़ोर से चिल्लाया" अरे फूट गया रे..."

अंधे व्यक्ति ने तुरंत ही कहा " अगर फूट गया है तो मुझे दे दो, ये आनंद मेरा है, मैं काफी देर से कोशिश कर रहा था, फूट ही नहीं रहा था।"