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शायद कुछ पेड़ ही बच जायें Shayad Kuch Ped Hi Bach Jaye Poem


थकी कलम सोचती है,
लिखते इंसान को देखकर
ये इंसान कितना भोला है,
 ज्ञान सारा किताब के हवाले कर,
अपने पास  कुछ  नहीं रखता है,
इस भोले को कौन समझाये,
अगर ये ना लिखे तो,
शायद कुछ पेड़ ही बच जायें।