ये हम कहाँ चले.......Ye Hum Kaha Chale Hindi Poem
पुरातन गवाहों से,
अमर प्यार को शापित कर,
मंदिर को मस्जिद से लड़ा चले,
ये हम कहाँ चले।
क्षेत्रवाद नहीं,
रास्ट्रवाद के नाम पर,
कितना खून मासूमों का,
यू ही हम बहा चले।
ये हम कहाँ चले।
ना बापू रहा,
ना उसके सिद्धांत,
उनको तो बेच हम,
अग्रेजी को खरीद चले,
ये हम कहाँ चले।
जीवन बना,
सबका "निजी"
मदद को चिल्ला रहा कोई,
पड़ा सड़क पे,
आँख मीच हम चले
ये हम कहाँ चले।
आए जहां से,
फिर वहीं जाना है,
बिना किसी पहचान के,
शायद ये हम भूल चले,
ये हम कहाँ चले।
(क्रमशः)