लगता है जो खामोश बरसों से, ये आदमी है Lagata Hai Jo Khamosh Barso Se Poem
लगता है जो खामोश बरसों से, ये आदमी है,
एक अदद जीने को, रोज मरता है यहाँ।
दादा झूठी सुनाई तूने, सच की विजयी कहानी,
देख तेरा सच तो अब, सरे आम हारता है यहाँ।
बापू, उसूलों को वक्त कि जंग खा रही एक अरसे से,
ताक पर रखें हैं बचे कुछ उसूल तेरे, गर्त खाते हैं यहाँ।
खामोशी से गूंगे बन चुके हैं, आदमी के वीरान चेहरे,
खामोश जबानों पर भी, लगता है पहरा यहाँ।
चौराहे पर इमानदारी बिक रही थी, बेईमानों के हाथों,
"सच" भी अब "ईमानदार" कहने से कतराता है यहाँ।
कभी वक़्त मिले तो इस मूरत से बाहर झाँक,
तुझे, तेरा इजादी आदमी, बीच बाजार बेचता है यहाँ।
हमने माना कि सच का दामन काँटों से उलझा है,
सच का दिया मन में जला, कोई मुस्कुराता हुआ, चला आता है यहाँ