मैडम सरोज जी विद्यालय समय के बाद घर पर बच्चो को ट्यूसन पढाया करती थी। शिक्षण कार्य के प्रति मैडम कि बड़ी ही रूचि थी। एक दिन मैडम जी अपने छात्रों को घर पर "टूयूसन" कुछ इस तरह से पढ़ा रहीं थी।
मैडम -"बोलो बच्चों दो एकम दो, दो दुनी चार"
बच्चे -"दो एकम दो .........................दो दुनी चार"मैडम ने बच्चों को शाबाशी देते हुए कहा की ऐसे ही "घोटते रहो, एक दिन जरुर याद हो जायेंगे"
"चलो बच्चों में आज आपको नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाती हूँ, देखो ये जो इधर उधर गरीब लोग होते हैं, काले लोग भी होते हैं, गंदे लोग होते है, गांव के लोग, ....................ये सब भगवान ने ही बनाये हैं,.....इसलिए इनसे किसी तरह की नफरत नहीं करनी चाहिए.....अल्टीमेटली...ये भी हमारे जैसे ही होते हैं,.....इनकी मदद करनी चाहिए"............।" मैडम ने बच्चों को समझाते हुए कहा।
"हाँ मैडम जी.....हम समझ गए की ये हमारे भाई हैं, इनसे नफरत नहीं करनी चाहिए....इनकी मदद करनी चाहिए।" बच्चों ने मैडम के वाक्य को दोहरा कर कहा।
तभी अचानक मैडम जी को एक आवाज सुनाई पड़ती है " ओ माई.....भगवान तेरा भला करे.....तेरा जोड़ा सलामत रखे......दो दिनों से कुछ खाया नहीं है ..... भगवान के नाम पर ....कुछ खाने को दे दे ....माई।" मैडम जी ने देखा की एक भिखारी उनके दरवाजे पर खड़ा होकर जोर जोर से चिल्ला कर भीख माँग रहा है।
मैडम जी ने वहीँ बैठे-बैठे ही भिखारी को कहा "मैंने पुरे शहर में क्या लंगर लगा रखा है? ......तुम जैसे लोगों ने ही इस देश को खड्डे में डाल रखा है.....चलो निकलों यहाँ से.....पता नहीं कहाँ कहाँ से चले आते है..... खाने को दे दो इनको.......गंदे कहीं के....चले आते हैं मांगने को.......।"
भिखारी के जाने के बाद मैडम जी ने बच्चो की ओर गुस्से से देखकर कहा " तुम क्या मेरी ओर गधों की तरह से देख रहे हो......जोर से बोलो दो एकम दो.... दो दुनी चार.....।"
बच्चे भी सुर में सुर मिला कर जोर-जोर से बोलने लगे "दो एकम दो दो दुनी चार ....... दो एकम दो...... दो दुनी चार........ दो एकम दो दो दुनी चार।"
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