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क्यों की वेद तो चार नहीं आठ होते हैं Kyo Ki Ved To Char Nahi Short Story Hindi

लोक कथा :- "शेर को सवा शेर"

एक गाँव में एक पंडित जी काशी पढ़ आया। काशी क्या पढ़ आया मानों सारा ज्ञान घोल के पी आया। गाँव आकर सोचा की क्यों नहीं इन गाँव वालों की अज्ञानता से ही कमाया जाये? पंडित जी आस पास के गाँव में जाया करते और एक ही प्रश्न पूछा करते, लेकिन उनकी शर्त ये थी की यदि जवाब सही नहीं दिया तो उनकी जेब में जो भी हो वो पंडित जी को देना पड़ेगा, और यदि सही जवाब दिया तो पंडित जी से जो मांगोगे, मिलेगा। पंडित जी का प्रश्न होता " बताओ वेद कितने होते हैं"। लोग इसका जवाब देते "चार"। पंडित जी कहते की नहीं तुम्हारा जवाब सही नहीं है  क्यों की वेद तो चार नहीं आठ होते हैं। पंडित जी समझाते की जिस प्रकार आदमी के औरत होती है उसी प्रकार से चार तो वेद और चार ही उनकी वेदानी (औरत), हो गए ना आठ।" पंडित जी ने बहुत से लोगों की जेबों को इसी प्रश्न से साफ कर दिया था।

एक बार पंडित जी ने एक राहगीर से कहा की "यदि तुमने मेरे प्रश्न का सही जवाब दिया तो जो मांगोगे मिलेगा, और अगर नहीं तो तुम्हारी जेब में जो भी होगा वो मेरा होगा।" पंडित जी ने अपना प्रश्न पूछा  " बताओ के वेद कितने होते हैं?"

राहगीर ने उत्तर दिया "चार" पंडित जी ने कहा की "चार नहीं आठ, चार वेद और चार ही उनकी लुगाई, हो गए ना आठ।"

राहगीर ने सोचा की ये पंडित तो मक्कार मालूम पड़ता है, उसे कुछ सोच कर जवाब दिया " जरूर आप की गिनती में कहीं कोई भूल लगी है। वेद आठ नहीं, वेद तो सोलह होते हैं, देखो चार तो वेद, चार उनकी वेदानी, चार उनके लड़के और चार ही उनकी लड़कियां..... हो गए ना पूरे सोलह"

पंडित जी के होश फाक्ता हो गए, वो अपने ही बनाए जाल में फंस जो गए थे। राहगीर ने कहा की "अब तो आप हार गए हैं,  इसलिए जो मैं माँगूँगा वो आप को देना होगा।"

 पंडित जी ने वचन दे रखा था, इसलिए मना भी नहीं कर पाये। राहगीर ने पंडित जी से कहा की "मुझे आप की मूंछ का एक बाल चाहिए"  और उसने पंडित जी की मूंछ में से एक बाल उखाड़ लिया और जाने लगा, तभी गाँव वालों ने पूछा की तुमने पंडित जी से धन क्यों नहीं लिया इस बाल का तुम क्या करोगे ? "

" अरे दिये तले अंधेरा, तुम्हें पता ही नहीं ?....  पंडित जी के एक बाल को खेत में बोने से बीस मन अनाज होता है।" राहगीर ने जवाब दिया।

बस फिर क्या था, पूरा गाँव देखते ही देखते पंडित जी पर भूखे भेड़िये की भांति टूट पड़ा और थोड़ी ही देर में पंडित जी की दाढ़ी मूंछ सफा चट, मानो उगी ही ना थी।

गाँव वालों ने आपस में कहा की " अगर मूंछ के बाल से बीस मन अनाज होता है.......... तो सिर के बालों में तो चालीस मन पक्का ही होता होगा"  भागते पंडित जी चिल्लाते रह गए और मिनटों में सिर पर एक भी बाल नहीं बचा। सिर पर हाथ फेरते फेरते पंडित जी घर को लौट आए।

पंडित जी ने कसम खा ली थी की दुबारा किसी को मूर्ख नहीं बनाऊँगा।

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