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बन्दर



कहते हैं मानव बंदरों का रिश्तेदार है। लेकिन मानव ने बंदरों को वक्त की दौड़ में काफी पीछे छोडकर बहुत विकास कर लिया है, बन्दर तो आज भी बन्दर ही है और जनाब हम चाँद पर प्लाट काटने की तैयारी में लगे हैं। रहने के लिए दूसरा घर ढूंढ रहे है। अब बन्दर क्या जाने ये सब बातें, लेकिन बन्दर की सोच है की मानव ने  चाहे अंतरिक्ष में कदम रख दिए हों, लेकिन हम आज भी पशु ही है। भई मेरी समझ से बन्दर ठीक ही बोल रहा है। मैं तो अपने को पशु ही मानता हूँ। पशु और मानव में क्या अंतर अपेक्षित होगा, यही न की पशु को मात्र चरने से मतलब होता है, और मानव मात्र चरने तक ही सीमित नहीं होता है। पशु के निर्णय बुध्धि से नहीं पेट से होते है। लेकिन मानव तो बुध्धि का प्रयोग भली भांति जानता है?

आज हम क्या पशु से भी बदत्तर नहीं है ? पशु की जरूरतें सीमित है और प्राकृतिक हैं। उसे मात्र खाने, पीने और सोने से मतलब है जो की उसके प्राकृतिक जरूरते होती हैं।  क्या हम भी ऐसे ही होते जा रहे है ? हमारे सामने आये दिन अन्याय होता रहता है, कौन बोलता है?, सड़क पर किसी की मांग का सिन्दूर बिखरा होता है, कौन उसे अस्पताल लेकर जाता है? किसी गरीब की इज्जत सरेआम नीलाम कर दी जाती है, कौन आकर उसे सहारा देता है?, एक और जहाँ करोड़ोंटन अनाज गोदामो में सड़ रहा हो वहा कौन पेट पर गमछा बांधकर फूटपाथ पर पड़ी जिन्दी लाशों को एक भी निवाला देता है ?, हमारे सामने भ्रष्टाचारी देश को गटकते जा रहे हैं, फिर भी हम चुप है की कोई आयेगा और इनकी शिकायत करेगा, कौन आयेगा यहाँ ?, क्या अब भी हम सभ्य मानव कहलाने के अधिकारी हैं, मैं तो नहीं हूँ, क्यों की मुझे डर है कही मैंने कुछ कह दिया तो मेरी तो नौकरी समझो गयी। ये सच भी है.....यहाँ ऐसा ही होता है।

बंदरों की जबान अगर हम समझ पाते तो हमें पता चलता की वो तो हमें अपने से भी गया बीता समझता है। हम गए बीते हैं भी, इसमें शायद ही कोई दो राय हो। अब आप ही देख लीजिए हमने इस स्वर्ग समान धरती माता से सब कुछ तो छीन लिया है आज । धरती माँ ने हम अहसान फरामोशो को रहने को जगह दी तो हमने इसे ही बर्बाद करना शुरू कर दिया है। जानवर तो मूक हैं वो उनकी भाषा में कुछ कहते भी होंगे तो हमें क्या समझ में आने वाला है ?.................लेकिन हमने उनकी जगह भी हथियानी शुरू कर दी है। क्या हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता..... क्या आज हमने अति नहीं कर दी है ?......यदि हम अपनी हरकतों से बाज नहीं आये तो वो दिन दूर नहीं जब सारे जानवर मिलकर हमें हमारे दायित्व गिनाने लगेंगे और हमारे किए का हिसाब भी मांगने लगेंगे।
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रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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