सरकारी सांड चर गया....सरकारी सांड चर गया Sarkari Sand Char Gaya Poem
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मत नट, कर जा चट, फटाफट,
हर माल पराया और चिल्ली मार,
अरे कौन खा गया, अरे कौन खा गया।
लड़ाई ये नहीं की कौन चाट गया मलाई,
जनाब लड़ाई है तो ये की वो दुष्ट,
अकेला ही चाट गया....अकेला ही चाट गया।
अब कैसे करूंगा मैं आपसे बातें,
आज अखबार में पढ़ा, था कोई राजा जो,
टेलीफोन ही खा गया....टेलीफोन ही खा गया।
नोंच नोंच कर तो हम भी खाते हैं देश को,
और मंच पर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं,
देश को नेता खा गया....देश को नेता खा गया।
सोये तो तुम भी थे रात में मेरे दोस्त,
अब चिल्लाते हो की अपने खेत को,
सरकारी सांड चर गया....सरकारी सांड चर गया।
गाली निकालते हैं हम पीठ पीछे,
गर जो आ जाये सामने तो तपाक से कहने लगते हैं,
श्रीमान आ गया....श्रीमान आ गया।
क्या खूब जादूगरनी है सोनिया मैडम,
देखो राजस्थान का नेता भी,
इटली इटली हो गया....इटली इटली हो गया।
तेरे को क्या चुनाव लड़ना है भाई,
कंडेक्टर रोडवेज का कहता उस यात्री से,
जो टिकट मांग गया....जो टिकट मांग गया।
टेलीविजन पर देखा की सरकार गिर गयी,
भाई अजीब सदमा था, सुना एक नेता तो,
कुर्सी पर ही मर गया....कुर्सी पर ही मर गया।
जो रोज एक नयी लंका बसाते हैं,
दशहरे के दिन वो बांग मारते हैं,
आज रावण मर गया....आज रावण मर गया।
समझ बैठे थे रहबर जिसे हम,
अब क्या कहें की आज उसी से ही,
हमारा घर जल गया...हमारा घर जल गया।
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