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मैं पहले दिन से ही तुम्हारी आँखों में आँसू ढूंढ रहा था Main Pahale Din se Hi Hindi Short Story

बात उस समय की है जब रामप्रसाद कक्षा दसवीं का विद्यार्थी था। गणित को छोड़ दें तो बाकी विषय में "किताब का ज्ञान" ठीक-ठाक ही  था उसे। गणित कभी भेजे में बैठी नहीं रामप्रसाद के। रामप्रसाद को जितनी सख्त नफरत गणित की किताब से थी उतनी ही गणित के मास्टर जी से भी। रामप्रसाद का पहला काम था रोज सुबह प्रार्थना में गणित के मास्टर जी को ढूँढना की आज आया भी है या नहीं। जिस दिन मास्टर जी छुट्टी पर होते, दिन बड़ा सुहाना गुजरता। अब बिना गणित पास किए तो दसवीं पास होने से रही, सो रामप्रसाद ने रटंत विद्या से ही काम चलाना शुरू कर दिया, जैसे भी हो येन केन प्रकारेण एक बार पीछा तो छूटे।

ऐसा नहीं था की मास्टर जी के प्रति रामप्रसाद किसी पूर्वाग्रह से प्रेरित था, मास्टर जी भी रोज घर जाने से पहले एक सवाल दे देते थे और दूसरे दिन सभी विद्यार्थिओं से ब्लेक बोर्ड पर उसका हल निकलवाते....ये थी समस्या की असली जड़। रामप्रसाद जीवन का स्वाद ही बिगाड़ के रख दिया था, गणित ने। रामप्रसाद अक्सर सोचता था की जिनको गणित नहीं आती, क्या वो आदमी नहीं होते।

जब रामप्रसाद किसी भी वैध तरीके से हल ना निकाल पाया, तो कक्षा मैं सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने लगा। इसके दो फायदे थे, एक तो  उसकी बारी आने से पहले कई पिट चुके होते ओर दूसरा ये की यदि किस्मत ने साथ दिया तो शायद उसकी बारी आने से पहले मास्टर जी आगे का पाठ पढ़ाने लगे, लेकिन इसकी उम्मीद कम ही थी।

एक लड़का था जो रामप्रसाद की कक्षा में काफी होशियार था, गणित में भी। रामप्रसाद को इससे भी शिकायत थी। शिकायत ये की वो सबसे आगे बैठता है, अब उसे क्या पड़ी है झट से उत्तर बताने की, खुद तो उत्तर दे कर बैठ जाता है, दूसरे भुगतते रहो, पिटते रहो, इसे तो बैठे-बैठे देखना ही तो है। रामप्रसाद प्राय: कक्षा में ये प्रचार करता था की ये आगे बैठने वाला लड़का ही उनके दुखों का पिटारा है, अगर ये चुपचाप बैठा रहे तो मास्टर जी को लगेगा की प्रश्न ही टेढ़ा है, किसी के भी समझ में नहीं आया है, और वो फिर से समझाएँगे। रामप्रसाद ने कई बार उसे बैठ कर समझा भी दिया की भाई तू हमको मरवाने पर क्यों तुला है, हम जब पिटते हैं तो क्या तुझे आराम मिलता है?... तू तो जवाब दे कर बैठ जाएगा, मार तो हमको खानी पड़ती है, थोड़ा चुप भी रहा कर भाई !..........लेकिन इससे भी कोई बात बनी नहीं।  इसी मामले को लेकर एक दिन होशियार लड़के से रामप्रसाद की मामूली झड़प हो गयी। मामला तुरंत हैड मास्टर के पास पहुंचा। हैड मास्टर ने बिना कुछ सुने फरमान सुना दिया की होशियार लड़का एकदम सही है और रामप्रसाद सौं आने गलत, रामप्रसाद जब तक अपने पिताजी को विद्यालय में बुला कर नहीं लाएगा वो कक्षा में नहीं बैठ सकता। रामप्रसाद से सोचा की ये हैड मास्टर तो पहले सही आदमी लगता था, हो ना हो इसको भी गणित वाले मास्टर ने ही भड़का दिया होगा....पक्का उसी का काम लगता है।

रामप्रसाद मन ही मन सोच रहा था की ये गणित भी अच्छी गले की जंजाल बनी, पीछा ही नहीं छोड़ रही है। अर्धवार्षिक परीक्षा सिर पर थी और रामप्रसाद विद्यालय से बाहर। रामप्रसाद अच्छे से जानता था की पिताजी को विद्यालय में बुलाना तो दूर की बात रही, अगर पता भी चल गया तो बेटा समझो गए काम से।

रोज रामप्रसाद घर से नियत समय से निकलता ओर कभी किसी गली में कभी किसी दूसरी में पूरे दिन चक्कर लगाकर छुट्टी के समय घर लौट आता। तीन चार बार स्कूल जाकर हैड मास्टर जी से माफी भी मांग ली लेकिन वो अपनी बात पर अड़े थे की 'नहीं नहीं.....पहले पिताजी को साथ लाओ......फिर तुम्हारी कोई बात सुनी जाएगी।'

रामप्रसाद रोज छुप-छुप के अपने सहपाठियों को स्कूल जाते देखता, वो सभी तो काफी मजे में दिखाई देते थे, बस वो ही फंसा था। अब रामप्रसाद पूरी तरह से टूट चुका था। एक दिन रामप्रसाद फिर से हैड मास्टर जी के कमरे में गया और बिना कुछ कहे बस फूट फूट कर रोने लगा और रोते रोते कहने लगा "बस गुरुजी मुझे एक आखिरी मौका दीजिये, मैं ऐसा काम फिर कभी नहीं करूंगा।"

"मैं पहले दिन से ही तुम्हारी आँखों में आँसू ढूंढ रहा था.......जो आज मिले हैं...............जाओ कक्षा में बैठ जाओ" हैड मास्टर ने मुस्कुराते हुए  कहा।

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